Tuesday 29 September 2015

रोमांस टिप्स

       कपल्स के लिए रोमांस टिप्स

दोस्तों क्या आप अपने पति या पत्नी से बेहद प्यार करते हैं लेकिन आपके दिल में प्यार होना ही काफी नहीं है बल्कि आपको अपने साथी के प्रति प्यार जताना भी आना चाहिए। 

प्यार एक अदृश्य और अमूर्त भावना है जिसे देखा नहीं जा सकता तो फिर आपके साथी को कैसे पता चलेगा कि आपके दिल में उनके लिए कितना प्यार है इसलिए आपको हमेशा अपने साथी के प्रति प्यार जताते रहना चाहिए और उसे अपने प्यार का अहसास दिलाते रहना चाहिए।

विशेषकर नवविवाहित कपल्स को हर छोटी-छोटी बातों में अपने जीवनसाथी के प्रति प्यार जताते रहना चाहिए। इस प्यार जताने को ही रोमांस कहते हैं। 

प्यार जताना, न केवल प्यार जताने वाले को अच्छा लगता है बल्कि जिसके प्रति प्यार जताया जा रहा है उसे भी अपने साथी का प्यार देखकर बहुत अच्छा लगता है, बहुत ख़ुशी होती है। 

दोस्तों मैं आपको यहाँ प्यार जताने या रोमांस करने के एक से एक तरीके बतानेवाला हूँ जिसे अपनाकर आप अपने वैवाहिक जीवन को और अधिक खूबसूरत और आनंदपूर्ण बना सकते हैं।
                   मांग भरना
1. पत्नी को चाहिए कि अगर पति घर पर हो तो स्वयं अपनी मांग न भरें बल्कि अपने पति से अपनी मांग भरवाएँ। 
यह बात आप अपने पति से मजाकिया और नाटकीय अंदाज में भी कह सकते हैं 

जैसे - "माँग भरो सजना", "मेरे पतिदेव जी मेरी माँग भरिए" । आपके पति को यह बहुत अच्छा लगेगा।
                 बाल संवारना
2. कभी-कभार पति अपने हाथों से पत्नी के बालों पर कंघी करें, उसकी जुल्फें संवारें, चोटी बनाएँ। इसी तरह कभी पत्नी अपने पति के बालों को कंघी करे।
                 लिपस्टिक लगाना
3. अपने हाथ से पत्नी के होठों पर लिपस्टिक लगाएँ। यह बहुत ही रोमांटिक आइडिया है कर के देखिए।
                   
                   साड़ी पहनाना

4. पत्नी को अपने हाथों से साड़ी पहनाएँ। 
                   
                    गोद में बैठना

5. अपनी पत्नी को अपने गोद में बैठाकर मीठी-मीठी प्यार भरी बातें  करें। 
लड़कियों को यह बात अच्छी तरह जानना और समझना चाहिए कि लड़कों को अपनी प्रेमिका या पत्नी को अपने गोद में बैठाना बहुत अच्छा लगता है। अगर आप अपने पति की गोद में बैठेंगी तो उनका दिल खुश हो जाएगा।
                     गोद में सोना

6. अपनी पत्नी के गोद में सिर रखकर लेटें और पत्नी पति के बालों को अपने हाथों से खूब सहलाएँ लड़कों को यह बहुत अच्छा लगता है। 

7. स्पर्श - स्पर्श में जादुई अहसास होता है अपने साथी को हमेशा अपने स्पर्श के द्वारा प्यार का अहसास दिलाते रहें। 
जैसे अपने साथी का हाथ पकड़ना, हाथ को सहलाना, बाँह पकड़ना, कंधे में हाथ रखना, एक दूसरे के बालों को सहलाना। इन स्पर्शों के द्वारा आप अपने साथी को सुख का अहसास करा सकते हैं। 

           अपने हाथ से खाना खिलाना

8. पति-पत्नी एक दूसरे को अपने हाथ से खाना खिलाएँ। कभी पति पत्नी को अपने हाथ से खिलाए कभी पत्नी पति को अपने हाथ से खिलाए ध्यान रखें कि आप शुरू से लेकर अंत तक प्रत्येक निवाला अपने हाथ से खिलाएँ इस दौरान अपने साथी को उसके हाथ से बिल्कुल खाने न दें। कभी दोनों एक साथ एक दूसरे को खिलाएँ। 
9. केवल खाना ही नहीं अन्य चीजें जैसे बिस्कुट, मिठाई, फल या आइसक्रीम कुछ भी हो अपने साथी को अपने हाथ से खिलाएँ।
               किस करना या चूमना

10. चुम्बन - प्यार जताने के तरीकों में सबसे ज्यादा प्रभावशाली और पसंदीदा तरीका है अपने साथी को किस करना या चूमना। 

आप अपने साथी के हाथ, माथे, गालों या होठों को चूमकर अपना प्यार जता सकते हैं। आप दो प्रकार से चुम्बन ले सकते हैं 

पहले प्रकार को हम लघु चुम्बन या short kiss कह सकते हैं जिसमें अपने पार्टनर को सामान्य रूप से कुछ सेकण्ड के लिए किस करते हैं। 

दुसरे प्रकार को हम दीर्घ चुम्बन या 
hot kiss कह सकते हैं इसमें अपने साथी के गालों को देर तक चूमें या उसके होठों को देर तक चूमें और चूसें। अंग्रेजी में इसे स्मूचिंग करना कहते हैं।


           बाइक में लिपटकर घूमना

11. आप जब भी बाइक में कहीं घूमने जाएँ तो हमेशा अपने पति को अपनी बाँहों में पकड़कर उनसे लिपटकर बैठें। 
लड़कियों को यह याद रखना चाहिए कि लड़कों को यह बहुत ज्यादा पसंद है।लड़कों का यह एक बहुत बड़ा सपना होता है कि वे अपनी प्रेमिका या पत्नी को बाइक में इस तरह बैठाकर घुमाएँ। 
आप अपने प्रेमी या पति से जितना अधिक चिपककर और लिपटकर बैठेंगी उसे उतना ही अच्छा लगेगा, उतनी ही ख़ुशी मिलेगी।

                हाथ पकड़कर घूमना

12. आप चाहे किसी गार्डन या पार्क में घूमने जाएँ, शॉपिंग करने जाएँ या फ़िल्म देखने हमेशा एक-दूसरे का हाथ पकड़कर घूमें। 
लोग क्या कहेंगे या क्या सोचेंगे इसकी परवाह न करें। आप दोनों शादीशुदा हैं, पति-पत्नी हैं इसलिए बिना किसी शर्म या संकोच के बेझिझक एक-दूसरे का हाथ पकड़कर घूमें। लोगों को अच्छा लगेगा या बुरा इसकी परवाह न करें।


          रोमांटिक फोटो खिंचवाएँ
पति-पत्नी एक दूसरे को प्यार करते हुए रोमांटिक फोटो खिंचवाएँ। एक दूसरे को किस करते हैं हुए स्मूचिंग करते हुए फोटो  खिंचवाएँ।

Saturday 27 June 2015

मेरे कुछ क़ानूनी प्रश्न

दोस्तों मेरे मन में कानून को लेकर कई प्रश्न हैं जिनका उत्तर मैं जानना चाहता हूँ। शिक्षित और जागरूक पाठकगण कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान करें विशेषकर कानून के क्षेत्र से जुड़े लोग जैसे पुलिस, वकील और जज जैसे महानुभावों से मेरा अनुरोध है कि कृपया मेरे प्रश्नों का सही समाधान करने की कृपा करें यह सभी लोगों व पाठकों के लिए फायदेमंद व ज्ञानवर्धक होगा।
                       मेरे प्रश्न इस प्रकार हैं
1. कोर्ट कितने प्रकार या स्तर के होते हैं ? क्या कलेक्टर (DM) भी जज होता है ?
2. क्या कोर्ट में केस लड़ने के लिए वकील के अलावा कोर्ट को भी फ़ीस देना पड़ता है ?
3. अलग - अलग कोर्ट में वकील की फ़ीस कितनी होती है ?
4. क्या लड़के - लड़कियों की उम्र 18 साल हो जाने पर क्या अपनी मर्जी से सेक्स करना सही है ?
5. अगर सही है तो उन पर PITA (Prevention of Moral Trafficking Act) क्यों लगता है ?
6. क्या लड़का - लड़की का साथ में घूमना, गार्डन या पार्क में घूमना या बैठना गैर कानूनी है ?
7. क्या किसी सुनसान या एकान्त स्थान पर किसी लड़का - लड़की का पाया जाना संदिग्ध या गैरकानूनी है !
8. यदि हमारे ऊपर कोई आरोप लगाए तो क्या आरोप लगाने वाला वह आरोप साबित करेगा या हमें उस आरोप को गलत साबित करना होगा ?
9. क्या कोर्ट में मैं अपनी सफाई में तर्क नहीं दे सकता?
 क्या मेरा वकील ही कोर्ट में बोल सकता है ?
10. क्या सुप्रीम कोर्ट की तरह हाईकोर्ट भी स्वतः संज्ञान ले सकता है ? किन मामलों में ले सकता है ?
11. क्या हाईकोर्ट का फैसला गलत लगने पर बिना किसी के अपील किए सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के खिलाफ संज्ञान ले सकता है ?
12. आर्य समाजीय शादी में लड़की के माता - पिता की सहमति अनिवार्य क्यों ? माता - पिता तो केवल विजातीय होने के कारण असहमत होते हैं। माता - पिता के असहमत होने पर कोर्ट मैरिज भी क्यों ?
13. अगर लड़का - लड़की गार्डन में बैठे हैं और दोनों बालिग हैं तो उनके माता - पिता को क्यों बुलाया जाता है ? अगर वे गैरकानूनी काम कर रहे हैं तो उनके खिलाफ सीधे कार्रवाई करें उनके माता - पिता को बुलाने की क्या जरुरत है ?
14. क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी अश्लीलता परोसा जा सकता है ? कोई सीमा है या नहीं ? न्यूड सीन को अश्लील क्यों माना जाता है ? क्या केवल निप्पल और योनि को ढक लेने से उसे अश्लील नहीं माना जाएगा ?
15. टीवी और फिल्मों में जो दिखाया जाता है वही काम लड़के - लडकियाँ किसी होटल, रिसोर्ट, फार्म हाउस आदि में करते हैं तो वह गैरकानूनी कैसे ? हम करें तो गलत है उसी को TV में दिखाया जाए तो सही है । रायपुर में पुल पार्टी
16.



















Tuesday 12 May 2015

प्रेरणादायक लेख

   हमेशा सकारात्मक नजरिया रखें

एक बार एक जूता बनाने की कंपनी ने दो युवकों को मार्केटिंग ऑफिसर बनाकर एक द्वीप पर भेजा, ताकि वे वहाँ पर उस कंपनी के बने जूतों के लिए बाज़ार की संभावनाएँ टटोल सकें। कुछ दिनों के बाद दोनों ने अपने मैनेजर को एक-एक टेलीग्राम भेजा, जिसके तुरन्त बाद उनमें से एक को नौकरी से हटा दिया, जबकि दूसरे को स्थायी कर दिया गया। हटाए गए ऑफिसर का टेलीग्राम था -- 'सर, यहाँ कोई भी व्यक्ति जूता नहीं पहनता, इसलिए हमारे जूतों की यहाँ कोई संभावना नहीं है।' जबकि दूसरे ऑफिसर का टेलीग्राम था -- 'सर, यहाँ कोई भी जूता नहीं पहनता, इसलिए यहाँ हमारे जूतों की अपार संभावनाएँ है।' सकारात्मक नजरिया रखने वाले लोग न केवल सफल होते हैं, बल्कि उनके जीवन में आगे बढ़ने की संभावनाएँ भी अधिक होती है। सकारात्मक नजरिया रखने वाले लोग समस्या में समाधान ढूंढते हैं, जबकि नकारात्मक नजरिए के लोग समाधान में भी समस्याओं को ढूंढते हैं। 
               मात्र 17 माह की छोटी सी आयु में सुनने और देखने की शक्त्ति खो चुकी हेलन केलर ने जीवन को हमेशा सकारात्मक नजरिए से देखा। अपनी अपंगता और आर्थिक तंगी के बावजूद वह संसार की बेहद खुश और प्रभावशाली लेखिका बनीं। 
वॉल्ट डिज्नी एक पेंटर और बेहद सफल निर्माता थे। उनका बनाया कार्टून कैरेक्टर मिकी माउस आज भी हर उम्र के लोगों द्वारा पसंद किया जाता है। वॉल्ट डिज़्नी जब अपने बनाए स्कैचेस एक अख़बार के संपादक को दिखाने गए तो उन्होंने उन स्कैचेस को प्रभावहीन और बेकार बताया। यदि डिज़्नी का नजरिया अपनी योग्यता के बारे में नकारात्मक होता तो आज उन्हें कोई न जानता होता। परंतु वे सकारात्मक नजरिए से जिंदगी जीने में यकीन रखते थे, इसलिए वे समझ गए कि अभी उन्हें और ज्यादा प्रयासों की आवश्यकता है। उनके प्रयासों ने अपना रंग दिखाया। शेष आप जानते ही हैं क़ि आज उनकी कंपनी 35 बिलियन यूएस डॉलर का कारोबार कर रही है, जिसकी शुरुआत उन्हीं रिजेक्टेड कार्टून्स से हुई थी। कुछ लोग बहुत सी कमियों के बावजूद जीतते हैं और कुछ सब कुछ होते हुए भी हर जाते हैं। सुख-दुःख, सफलता-असफलता और संतुष्टि-असंतुष्टि का निर्धारण आपका नजरिया ही करता है।व्यक्ति के व्यवहार से उसके नजरिए का पता लगाया जा सकता है। इसी तरह यदि किसी को अपना व्यवहार बदलना हो तो पहले उसे नजरिए में तो परिवर्तन करना ही होगा। जिंदगी की राह में आनेवाले सुख-दुःख, संघर्ष सब व्यक्ति के स्वयं के ही हाथ में है। जीवन के प्रति जैसा नजरिया रखेंगे वैसा ही जीवन सामने होगा।
                  
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                गलतियों  से  सीखें

एक शिल्पकार था। वह जब भी कोई मूर्ति बनाता तो स्वयं ही उसकी कमियाँ ढूंढता और फिर वैसी ही दूसरी मूर्ति बनाता जिसमें वे कमियाँ नहीं होती। वह पहली मूर्ति को नष्ट कर देता और दूसरी मूर्ति को ही बाजार में बेचता था। एक बार उसने अत्यंत सुन्दर मूर्ति बनाई। जब उसने देखा क़ि इस मूर्ति में कोई कमी नहीं है, तो वह आश्चर्यचकित हुआ। उसने खूब सुक्ष्मता से उस मूर्ति का अवलोकन किया और पाया कि इस मूर्ति में कोई कमी नहीं है तो वह रोने लगा। उसके रोने की आवाज उसके पड़ोस में रहनेवाले दूसरे शिल्पकार ने सुनी। वह उसके पास आया और उसके रोने का कारण पूछा। शिल्पकार ने कहा कि मुझे इस मूर्ति में कोई कमी नहीं दिख रही है। पड़ोसी ने पूछा - जब कोई कमी नहीं है तो फिर तुम रो क्यों रहे हो ? शिल्पकार ने कहा - जब तक मुझे अपनी कमियाँ नहीं दिखती, तब तक मैं अपनी कला को सुधार नहीं सकता। आज मुझे कोई त्रुटि नहीं दिख रही है, इसलिए मुझे रोना आ रहा है। यदि तुम मेरी इस मूर्ति में कोई कमी निकाल दो तो मैं तुम्हारा बहुत आभारी रहूँगा। पड़ोसी ने ध्यान से मूर्ति को देखा और मूर्ति की नाक, कमर व पैरों की उँगलियों में कुछ त्रुटियाँ निकालीं। अपनी मूर्ति की त्रुटियाँ जानकर शिल्पकार बहुत प्रसन्न हुआ और समझ गया कि कई बार हम स्वयं अपनी त्रुटियाँ नहीं जान पाते हैं जबकि दूसरे व्यक्ति उसे देख लेते हैं। इसलिए स्वयं की त्रुटियाँ निकालकर सुधारने के साथ - साथ दूसरों से भी अपनी त्रुटियाँ जानकर सुधारी जाएं तो व्यक्ति बहुत प्रगति कर सकता है।
                 अपनी गलतियों को देखने और उन्हें सुधारने से ही व्यक्ति प्रगति के पथ पर बढ़ सकता है। लेकिन कई बार व्यक्ति अपनी त्रुटियाँ नहीं निकाल पाता है। ऐसी स्थिति में उसे अपनी गलतियाँ निकालने के लिए ऐसे व्यक्ति की सहायता लेनी चाहिए जो वास्तविक रूप से उसकी त्रुटियाँ निकाल सके और उसे उन्हें सुधारने का दिशा निर्देश दे सके।

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             बाएँ हाथ का खेल

मुर्शिदाबाद का सनकी नवाब कृष्णनगर के राजा कृष्णचन्द्र को आए दिन किसी न किसी उलझन में डालता रहता था। राजा के दरबार में गोपाल नामक चतुर नाई था, जो उनकी हर उलझन को चुटकी बजाते हुए हल कर देता था। एक बार उदास होकर राजा उससे बोले - इस बार नवाब ने हमें बड़ा ही बेतुका काम सौंपा है, जिसमें तुम भी कुछ नहीं कर पाओगे। गोपाल - महाराज, आप बताएँ तो सही। हो सकता है वह काम मेरे लिए आसान हो। राजा - नवाब ने मुझे मुझे पूरी पृथ्वी की लंबाई - चौड़ाई नापकर बताने को कहा है। गोपाल - बस ! यह तो मेरे लिए बाएँ हाथ का ही खेल है। राजा - मजाक मत समझो, यदि यह कम नहीं हो पाया तो नवाब मुझे फाँसी पर लटका देगा। गोपाल - निश्चिन्त रहें महाराज ! मैं ऐसा कुछ नहीं होने दूँगा। आप बस मेरे लिए सूती व रेशमी धागे से भरी हुई पच्चीस बैलगाड़ियों की व्यवस्था करा दें।राजा ने वैसा ही करा दिया। कुछ दिन बाद गोपाल उन बैलगाड़ियों को लेकर नवाब के पास पहुँचा। नवाब - खाली हाथ आए हो या नाप भी लाए हो। गोपाल - हुजुर, नाप साथ में लाया हूँ। इसके लिए आपको बाहर चलना पड़ेगा। इस पर दोनों बैलगाड़ियों के पास पहुँचे। गोपाल - हुजूर, पहली चौदह गाड़ियों में जो धागा है, वह धरती की लंबाई के बराबर है और शेष गाड़ियों में चौड़ाई के बराबर। नवाब - लेकिन यह बात गलत साबित हुई तो ? गोपाल - हुजूर, आप जाँच करा लें, गलत हो तो फाँसी पर चढ़ा देना। यह सुनकर नवाब की जबान पर ताले लग गए। तभी गोपाल बोला - हुजुर, बड़ी मेहनत का काम था, इनाम नहीं देंगे ? खिसियाए नवाब ने उसे इनाम देकर विदा कर दिया। वापस लौटकर जब यह बात उसने राजा को बताई तो वे उदासी छोड़ हँसते हुए बोले - वाकई यह तो बाएँ हाथ का ही खेल था। 
               दोस्तों, अक्सर हम जिस काम को असंभव या कठिन मानते हैं, वह दूसरे के लिए भी वैसा ही हो, यह जरूरी नहीं। हो सकता है वह काम सामने वाले के लिए बहुत ही आसान हो, बाएँ हाथ का खेल हो, क्योंकि हर व्यक्ति के सोचने - समझने की क्षमता अलग - अलग होती है। इसलिए यदि आप किसी समस्या को हल नहीं कर पा रहे हैं, तो यह न सोचें कि कोई दूसरा भी उसे हल नहीं कर पाएगा और वह समस्या अनसुलझी रह जाएगी। नहीं, यह संभव नहीं, क्योंकि जैसे हर पहेली का एक हल होता है, वैसे ही हर समस्या का भी एक समाधान होता है। जरूरी है उसके बारे में निश्चिन्त होकर सोचा जाए। सिर पकड़कर बैठने से तो हल होने से रहा। यदि आपको हल नहीं सूझ रहा हो, तो किसी ऐसे व्यक्ति को खोजें जिसके लिए वह उसके बाएँ हाथ का खेल हो। आपको कोई न कोई जरूर मिलेगा, जो असंभव को भी संभव कर दे।

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           भूत सवार होगा तभी उतरेगा

सन् 1905 में ब्रिटिश सरकार द्वारा हिन्दुओं और मुसलमानों में फूट डालने के उद्देश्य से किए गए बंगाल विभाजन का जोरदार विरोध हुआ। विरोध प्रदर्शन करनेवालों पर पुलिस भी बेरहमी से लाठियाँ बरसाती थी। यह सब देखकर किशोर खुदीराम का खून खौल उठता था। वह उन दिनों बंगाल के मेदिनीपुर में अपनी बड़ी बहन के साथ रहता था। उसकी बहन अक्सर उसे इन सब बातों से दूर रहने की सलाह देती, लेकिन खुदीराम देशप्रेम से ओत - प्रोत तर्क देकर उन्हें निरुत्तर कर देता। इधर अंग्रेजों के दिनोंदिन बढ़ते अत्याचार खुदीराम के दिलोदिमाग पर गहरा असर डालते रहे। एक बार उसे मलेरिया हो गया। उसका शरीर बुखार से तप रहा था। ऐसे में वह बड़बड़ाने लगा - वन्दे मातरम्, अंग्रेजों को मार डालो, उन्हें देश से बाहर खदेड़ दो। वह हाथ - पैर मारने लगा। कई लोगों ने मिलकर उसे संभाला। यह सब देखकर किसी ने कहा - इस पर तो भूत सवार है। इसके लिए तो ओझा को ही बुलवाना पड़ेगा। सलाह पर अमल हुआ। ओझा को बुलाया गया। ओझा अपने तरीके से झाड़ - फूँक कर भूत उतारने लगा। जल्द ही खुदीराम ठीक हो गया। लोगों को लगा कि झाड़ - फूँक से भूत उतर गया। बाद में उसकी बहन बोली - खुदी, तुमने तो मुझे डरा ही दिया था। खुदीराम - क्या किया था मैंने ? इस पर उसने झड़ - फूँक वाली बात बताई तो वह बोला - दीदी मेरा भूत अभी उतरा नहीं है। जो भूत मुझे तंग कर रहा है, वह तो अंग्रेजों को भगाने का भूत है। उसे झाड़ने का कोई मन्त्र है क्या उस ओझा के पास ? निश्चित ही इस बार भी खुदीराम की बहन निरुत्तर हो गई होगी। 
दोस्तों, कुछ भूत ऐसे होते हैं जो आसानी से नहीं उतरते और उन्हें उतरना भी नहीं चाहिए। खुदीराम पर देश की आजादी का भूत सवार था। ऐसा ही भूत हर उस क्रांतिकारी के सिर पर सवार था, जिसका लक्ष्य देश की आजादी था। अगर उनके सिर पर यह भूत नहीं चढ़ता तो शायद आज हम आजाद देश के नागरिक नहीं होते। इसी तरह यदि आपने भी अपने जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारित कर रखा है और लाख कोशिशों के बाद भी आपको वह पूरा होता नहीं दिखता, तो एक बार आकलन करके देख लें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके सिर पर उसे पूरा करने का भूत ही सवार न हो। यदि ऐसा है तो पहली फ़ुर्सत में सब काम छोड़कर उसका भूत अपने सिर पर चढ़ाएँ, क्योंकि यही भूत आपको आपके मुकाम तक पहुँचा सकता है। जब यह भूत आपके सिर पर सवार होगा तभी तो आप सुध - बुध खोकर, सब कुछ भूलकर लक्ष्य प्राप्ति में जुटेंगे। और जब तक आप लक्ष्य नहीं पा जाएँगे, तब तक यह भूत आपको सताता रहेगा, परेशान करता रहेगा। जिस दिन आपको सफलता मिल जाएगी, उस दिन यह खुद - ब - खुद ही आपके सिर से उतर जाएगा। 
दूसरी ओर, कहते हैं कि सफलता कोई भूत के पकवान नहीं होती, जो आसानी से आपके हाथ आ जाए। वैसे भी भूत के पकवान जितनी आसानी से हाथ आते हैं, उतनी ही आसानी से छूट भी जाते हैं। कामयाबी के लिए तो आपको खूब छक के काम करना पड़ता है यानी आपको जी - तोड़ मेहनत करनी पड़ेगी, पूरी लगन से लगना होगा। तब आपकी मेहनत का जो फल, जो सफलता आपको मिलेगी, वह स्थायी रहेगी। 
यदि आप पर भी कामयाबी का भूत यानी धुन सवार हो गई, तो आप भी बिना तनाव के हँसते - हँसते अपने मुकाम को हासिल कर लेंगे, करते जाएँगे वरना आप कितना ही सिर धुन लें, वह आपके आसपास भी नहीं फटकेगी। तो तैयार हैं न अपने सिर पर भूत को सवार करने के लिए। 

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      अच्छे में बुरा और बुरे में छुपा है अच्छा

परियाँ भेष बदलकर घूमने निकली थीं। उन्होंने बुजुर्ग महिलाओं का रूप धर लिया था। घूमते-घूमते रात हो गई, तो वे सामने दिख रहे एक आलीशान मकान के दरवाजे पर पहुँच गई। वह एक अमीर का घर था। वृद्धाओं के वेष में परियों ने उससे रात के लिए आश्रय माँगा। वह जमाना समाज में अतिथि देवो भवः की भावना वाला था। इसलिए अमीर चाहकर भी मना नहीं कर सका। लेकिन उसने उन्हें घर के किसी कमरे में ठहराने के बजाय तहखाने में ठहरा दिया। परियों ने वहाँ किसी तरह रात काटी। सुबह एक परी की नजर तहखाने की टूटती दीवाल पर पड़ी, तो उसने जादू से उसकी मरम्मत कर दी।
          अगली रात वे एक गरीब के घर पहुँचे। वह परिवार भले ही गरीब था, लेकिन सभी सदस्य परियों की खातिर के लिए आतुर हो उठे। उन्होंने उन्हें अपने हिस्से का खाना खिलाया और सबसे अच्छे कमरे में सुलाया। सुबह जब परियाँ जाने लगीं, तो उन्होंने देखा कि उस गरीब की पत्नी रो रही थी। पूछने पर पता चला कि उस परिवार की आय का बड़ा सहारा, एक बकरी रात को अचानक मर गयी। दूसरी परी ने पहली को मुस्कुराते हुए देखा, तो समझ गई कि यह उसी की करतूत है। उसने पूछा कि तुमने दुर्व्यवहार करने वाले अमीर की दीवार बिना कहे सुधार दी, जबकि इस सज्जन परिवार की आय का सहारा ही छीन लिया। पहली परी ने बताया - 'दरअसल, तहखाने की दीवार में सोने की सैकड़ों मुहरें दबी थीं। अगर दीवार जरा और उखड़ती, तो मुहरें बाहर झाँकने लगती। इसलिए मैंने दीवार की मरम्मत कर दी, ताकि मुहरें हमेशा वहीं दबी रहें। दूसरी तरफ, कल इस गरीब परिवार की स्त्री पर मौत आई थी, लेकिन मैंने उसे बकरी की तरफ मोड़ दिया था।' 
सबक - चीजें या घटनाएँ जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं। इसलिए कोई भी धारणा तात्कालिक नहीं, अंतिम परिणाम के आधार पर बनाई जानी चाहिए। अक्सर बुराई में भी अच्छाई छुपी होती है।
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          कोई भी बीमारी नहीँ होती है लाइलाज

लंदन के सेंट मेरी हॉस्पिटल मेँ कार्यरत एलेक्जेंडर फ्लेमिंग एक लापरवाह लैब टेक्नीशियन के रुप मेँ विख्यात थे। प्रयोगशाला मेँ उनकी चीजेँ बेतरतीब तरीके से पहली रहती थीं। एक बार वे फोड़े के मवाद के नमूने वाली पेट्री डिश रखकर भूल गए। इस बीच वे लंबी छुट्टी पर चले गए। छुट्टियों से लौटकर जब वे 28 सितंबर 1928 को लैब मेँ गए तो उंहोन्ने देखा कि कई पेट्री डिश पर फफूंद पनप गई है, जो कि खिड़कियों के रास्ते लैब मेँ आने वाली हवा के साथ उड़ कर आई थी। वे उन्हें कूड़ेदान मेँ फेंकने लगे तभी मवाद वाली डिशें भी उनके हाथ मेँ आईं। कुछ सोचकर उन्होंने कुछ डिशें नहीं फेंकी। बाद मेँ जब उन्होंने उन डिशों को माइक्रोस्कोप मेँ देखा तो पाया कि डिश मेँ जहाँ-जहाँ फफूंद पनपी थी, वहाँ वहाँ के बैक्टीरिया मर गए थे। यह देखकर वह हैरान रह गए। पता लगाने पर वह फफूंद पेनिसिलियम नोटाडम निकली। प्रयोग को दोहरा कर उन्होंने पाया कि उसका फफूंद मेँ संक्रामक रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता थी। इस अकस्मात् हुई घटना ने चिकित्सा विज्ञान की दुनिया ही बदल दी जिसने पेनिसिलिन के रुप मेँ पहला एंटीबायोटिक दिया। इससे कई लाइलाज बीमारियों का इलाज संभव हो सका। दोस्तों पुरानी कहावत है कि जहर जहर को मारता है। इसी कारण बैक्टीरिया द्वारा होने वाली टीबी, हैजा, पेचीश, टायफाइड, डिप्थीरिया, न्यूमोनिया आदि जैसी कई महामारियों का इलाज भी बैक्टीरिया के माध्यम से ही संभव हुआ। आज हम सभी एंटीबायोटिक के बारे मेँ जानते हैँ लेकिन तब किसी का इस ओर ध्यान नहीँ गया था कि बैक्टीरिया को बैक्टीरिया ही मार सकता है। लेकिन कहते हैँ ना कि जब किस्मत पलटती है तो जरुरी नहीँ कि सौभाग्य दरवाजे से ही आए, वह छप्पर फाड़ कर भी आ सकता है और खिड़की के रास्ते भी। फ्लैमिंग की किस्मत का सितारा खिड़की के रास्ते से आकर चमका। हालांकि वह पूरी मानव सभ्यता के लिए एक चमत्कारिक घटना थी, जिससे पता चला कि कई बार लापरवाही भी काम आ जाती है। फ्लैमिंग की लापरवाही के कारण ही चिकित्सा विज्ञान ने इतनी लंबी छलांग लगाई। लेकिन लापरवाही का मतलब यह नहीँ कि उन्होंने कुछ नहीँ किया था या वे कुछ नहीँ कर रहे थे वे अपनी लैब मेँ वर्षो से कई घंटों काम करके बेमौत मरते इंसान को बचाने की जद्दोजहद मेँ लगे थे। उनकी मेहनत और भावना से खुश होकर ही ईश्वर ने खिड़की के रास्ते उनकी खोज को मुकाम तक पहुंचाया। ऐसे ही यदि आप भी किसी समस्या को सकारात्मक तरीके से सुलझाने की कोशिश करेंगे तो ईश्वर आपको उसका हल जरुर सुझाएगा, क्योंकि हर समस्या का एक हल होता है वैसे ही जैसे कि कोई भी बीमारी लाइलाज नहीँ होती। यदि रोग है तो उसका उपचार भी होगा दर्द है तो दवा भी होगी। हो सकता है आज हमेँ उसकी जानकारी नहीं है, लेकिन कल भी नहीँ होगी ऐसा संभव नहीँ बशर्ते हम हाथ पर हाथ रखकर ना बैठें वरना उन पर फफूंद उग आएगी।
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       सपनों को पूरा करने में मदद करते हैं सपने

महान रसायन विज्ञानी फ्रेडरिक आगस्ट कैकुले सन् 1865 में कार्बनिक पदार्थ बैंजीन की संरचना की खोज में लगे थे। वे इस काम में इस तरह डुबे रहते कि उन्हें न दिन की खबर रहती न रात की। यह समस्या उनके दिलो-दिमाग पर इस तरह हावी थी कि उन्हें इसके अलावा कुछ और सूझता ही नहीं था। इसके बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिल पा रही थी। सर्दियों में एक दिन प्रयोगशाला में काम करते-करते थक जाने पर वे कुछ देर आराम करने के इरादे से एक अंगीठी के पास कुर्सी लगाकर बैठ गए। थोड़ी ही देर में उनकी आँख लग गई और उन्हें एक सपना दिखाई दिया की कार्बन के 6 परमाणु उनकी प्रयोगशाला की अंगीठी के ऊपर नाच रहे हैं। नाचते-नाचते वे अचानक एक-दूसरे का हाथ पकड़कर एक वृत्ताकार संरचना में व्यवस्थित हो गए। तभी उनकी नींद टूट गई और वे सपने के बारे में सोचने लगे। कुछ देर के सोच-विचार के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उनके सपने की ही तरह बैंजीन के कार्बन के 6 परमाणु एक-दूसरे से गोलाई में जुड़े रहते हैं। इस निष्कर्ष के आधार पर उन्होंने प्रयोग शुरू किए और नतीजा सपने जैसा ही आया। इस प्रकार उनके सपने ने एक बहुत बड़ी समस्या हल कर दी।
                  दोस्तों रूसी कहावत है कि सोती लोमड़ी सपने में मुर्गियाँ ही गिनती रहती है, क्योंकि जागते हुए वह इसी उधेड़बुन में लगी रहती है कि मुर्गियों को कैसे पकड़े। इसी तरह किसी काम या उलझन में होने पर व्यक्ति को उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते उस काम के सिवाय कुछ नहीं सूझता। वह बात उसके मन-मस्तिष्क पर इस तरह हावी रहती है कि उसे आसानी से नींद नहीं आती। यदि आती भी है तो वह उसी के बारे में सोचते-सोचते सोता है और एक झटके के साथ जागकर फिर से उस पर सोचना शुरू कर देता है। ऐसे में उसके ख्वाब भी उस विषय से कैसे अछूते रह सकते हैं। वह सपने में भी अपने आपको उन्हीं परिस्थितियों में पाता है, जिनमें कि वह जागृत अवस्था में रहता है। तब कई बार उसके सपने उसे उस समस्या का हल भी सुझा देते हैं। जरूरत होती है सिर्फ उन्हें समझने की। लेकिन कहा जाता है कि सपनों के सहारे जिंदगी नहीं जी जाती, क्योंकि वे हकीकत से दूर होते हैं। यह बात पूरी तरह सही नहीं है। कहते हैं कि मूर्खों के सपने मूर्खतापूर्ण होते हैं तो फिर समझदारों के सपने भी समझदारी भरे होंगे। यानी महत्वपूर्ण यह है कि सपने देख कौन रहा है। इसलिए यदि आप अपने सपने पूरे करने के लिए सही राह पर चल रहे हैं तो आपके सपने भी आपको गलत राह नहीं दिखाएँगे। मुसीबत में पड़ने पर वे आपको उससे निकलने की राह भी सुझाएँगे बशर्ते आप उनकी मानें, उन्हें पढ़ना जानें। यदि आप भी कैकुले की तरह अपने सपने में छिपे गूढ़ अर्थ को जान गए तो आपके भी सपने पूरे होंगे वरना वे सिर्फ सपने ही रह जाएँगे। 
           दूसरी ओर कहावत है कि बिल्ली को छिछड़ो के ख्वाब। अक्सर यह बात नकारात्मक सेंस में सामने वाले पर कटाक्ष में कही जाती है कि उसे किसी बात या कार्य विशेष के अलावा कुछ नहीं सूझता। इसमें कटाक्ष भले ही हो, लेकिन यह बात भी जानने की है कि हम जो पाना चाहते हैं, जब तक उसके सपने नहीं देखेंगे तो उसे पाएँगे कैसे। सपने होंगे तभी तो उन्हें हकीकत में बदलने की कोशिश करेंगे। इसलिए खूब सपने संजोओ ताकि उन्हें पूरा कर सको। फिर भले ही दिन हो या रात। दिन के सपने को लोग भले ही दिवास्वप्न कहकर नकार ही क्यों न दें, कैकुले के दिवास्वप्न ने ही तो इतनी बड़ी खोज को प्रकाश में लाने में मदद की।
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          जो डरता है वह डरता ही रहता है

एक चूहा था। उसे बिल्ली से बड़ा डर लगता था। हालांकि यह स्वाभाविक है कि चूहे को बिल्ली से डर लगे, पर इस चूहे को कुछ ज्यादा ही डर लगता था। अपने सुरक्षित बिल में सोते हुए भी सपने में उसे बिल्ली नजर आती। हलकी-सी आहट से उसे बिल्ली के आने का अंदेशा होने लगता। सीधी-सी बात यह कि बिल्ली से भयभीत चूहा चौबीसों घंटे घुट-घुटकर जीता था। 
              ऐसे में एक दिन एक बड़े जादूगर से उसकी मुलाकात हो गई। फिर तो चूहे के भाग ही खुल गए। जादूगर को उस पर दया आ गई उसने उसे चूहे से बिल्ली बना दिया। बिल्ली बना चूहा उस समय तो बड़ा खुश हुआ, पर कुछ दिनों बाद फिर जादूगर के पास पहुँच गया, यह शिकायत लेकर कि कुत्ता उसे बहुत परेशान करता है। 
जादूगर ने उसे कुत्ता बना दिया। कुछ दिन तो ठीक रहा, फिर कुत्ते के रूप में उसे परेशानी शुरू हो गई। अब उसे शेर-चीतों का बड़ा दर रहता। इस बार जादूगर ने सोचा कि पूरा इलाज कर दिया जाए, सो उसने कुत्ते का रूप पा चुके चूहे को शेर ही बना दिया। जादूगर ने सोचा कि शेर जंगल का राजा है, सबसे शक्तिशाली प्राणी है, इसलिए उसे किसी से डर नहीं लगेगा। लेकिन नहीं। शेर बनकर भी चूहा कांपता ही रहा। अब उसे किसी और जंगली जीव से डरने की जरुरत नहीं थी, पर बेचारे को शिकारियों से बड़ा डर लगता। वह वन में विचरण करता, तो मन में खटका रहता कि पता नहीं, किस तरफ से कोई गोली आकर उसके प्राण ले ले। इस डर से वह गुफा से बाहर कम ही निकलता था। बहुत जरुरी हो जाता, तभी शिकार करता। आखिर जब खुद शिकार हो जाने का डर असहनीय हो गया, तो वह एक बार फिर जादूगर के पास पहुँच गया। लेकिन इस बार जादूगर ने उसे शिकारी नहीं बनाया। उसने उसे चूहा ही बना दिया। जादूगर ने कहा - 'चूँकि तेरा दिल ही चूहे का है, इसलिए तू हमेशा डरेगा ही।' 

सबक - डर कहीं बाहर नहीं होता, वह हमारे भीतर ही होता है। स्वार्थ की अधिकता और आत्म-विश्वास की कमी के कारण हम डरते हैं। इसलिए अपने डर को जीतना है तो पहले खुद को जीतना पड़ेगा।


              नौकरी से हटाया तो 
            लॉ की पढ़ाईजीता केस

कभी हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड में इंजीनियर थे। कंपनी ने बर्खास्त किया, तो कानून की पढ़ाई की। वकील बने और 17 साल तक कंपनी के खिलाफ क़ानूनी लड़ाई लड़ी। अदालत ने पक्ष में फैसला दिया। फिर नौकरी मिली और फिर खेतरी कॉपर कॉम्पलेक्स (राजस्थान) में बतौर टेक्निकल इंजीनियर के पद पर 22 महीने नौकरी करने के बाद रिटायर हुए। ये कहानी है घाटशिला के रहनेवाले मोइदुल हक़ की। सेन टोला, चाइबासा के मूल निवासी हक़ अब घाटशिला सिविल कोर्ट में वकालत कर रहे हैं।
                  26 मई 1977 को हक़ ने HCL ज्वाइन किया था। वे हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड के मुसाबनी माइंस में टेक्निकल असिस्टेंट थे। पारिवारिक कलह के कारण 10 दिनों तक बिना सूचना दिए वे ड्यूटी पर नहीं गए। कंपनी प्रबंधन ने इसे गंभीर लापरवाही माना और बिना नोटिस दिए उन्हें 27 सितम्बर 1955 को बर्खास्त कर दिया। उनका क्वार्टर भी खाली करवा लिया गया। कंपनी की कार्रवाई के खिलाफ उन्होंने कंपनी के आलाधिकारियों से संपर्क किया, उन्हें कारण और अपनी समस्या बताई लेकिन लाभ नहीं हुआ।
                हाईकोर्ट में सुनवाई लंबी चलेगी और इसमें काफी पैसे खर्च होंगे। यह सोचकर हक़ ने रांची लॉ कॉलेज में दाखिला लिया। उन्होंने वकालत की पढ़ाई शुरू की। डिग्री हासिल की और अपने केस के पैरवीकार खुद बन गए। कोर्ट में केस करीब 17 वर्षों तक चला। हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के फैसले को बरक़रार रखने का आदेश देते हुए हक़ के पक्ष में फैसला दिया।
              हक़ ने दोबारा कंपनी ज्वाइन की। उन्होंने खेतरी कॉपर कॉम्पलेक्स में 22 महीने नौकरी की और 31 दिसम्बर 2013 को रिटायर हुए।
                17 साल के संघर्ष में हक़ ने काफी कुछ खोया। परिवार बिखर गया। क़ानूनी लड़ाई में ऐसे उलझे कि अपने भी बेगाने हो गए। पत्नी ने भी साथ छोड़ दिया। उन्हें परिवार  बिखरने का गम है।
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"पूरे समुंद्र का पानी भी एक जहाज को नहीं डुबा सकता, जब तक पानी को जहाज अन्दर न आने दे।
इसी तरह दुनिया का कोई भी नकारात्मक विचार आपको नीचे नहीं गिरा सकता, जब तक आप उसे अपने
अंदर आने की अनुमति न दें।"

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🌷असफलता का डर (Fear of Failure)🌷

क्या जरुरत है ये सोचने की :-"कहीं ऐसा न हो जाये",
क्यों न आज से ये सोचें :- "ज्यादा से ज्यादा क्या होगा"।

मित्रों पहले समझते हैं डर को और इसके दुष्परिणाम को, इस डर ने हमें कितना खोखला बना दिया है, देखते हैं ......

1) हमें तैरने में डर लगता है, कहीं डूब न जाएँ - इसलिए आजतक हमें तैरना नहीं आया.
2) हमें पढ़ाई से डर लगता है, कहीं fail न हो जाएँ - इसलिए आजतक हम अच्छे student नहीं बन पाये.
3) हमें office में नये तरीके को आजमाने में डर लगता है, कहीं Boss नाराज न हो जाए - इसलिए हम बहुत अच्छे employee नहीं बन पाए.
4) हमें कार, स्कूटर चलाने में डर लगता है, कहीं accident न हो जाए - इसलिए हमें आजतक कार, स्कूटर चलानी नहीं आई.
5) हमें स्कूल, कॉलेज, ऑफिस के function में stage में आने में डर लगता है, कहीं लोग मजाक न उड़ाएं - इसलिए आजतक हर function में हम छिप कर बैठते हैं.
6) हमें खाना बनाने या खाने में नया experiment करने में डर लगता है, कहीं ख़राब बन गया तो घरवाले क्या कहेंगे - इसलिए आजतक हमने खाने में कुछ नया नहीं सीखा.
7) हमें competitive exam देने में डर लगता है, कहीं fail हो गए तो लोग क्या कहेंगे - इसलिए आजतक अच्छी नौकरी की तलाश कर रहे हैं.
8) कोई नया काम या business करने में डर लगता है, कहीं पैसा डूब गया तो - इसलिए आजतक सारे business plan दिमाग में ही धक्के खा रहे हैं.
9) किसी भी काम में risk लेने का डर, कहीं काम ख़राब हो गया तो मेरे पीछे मेरे बीबी, बच्चों का क्या होगा - इसलिए आजतक कभी risk ही नहीं लिया.
10) हम खेलेंगे नहीं या अपने बच्चे को खेलने नहीं भेजेंगे, क्योँकि कहीं चोट न लग जाये - इसलिए न खुद और न हमारा बच्चा अच्छे खिलाडी हैं.  
11) मित्रों इसी तरह के हजारों प्रश्न हमारे दिमाग में चलते रहते हैं ......

सार :- मित्रों इस डर की वजह से अपनी जिंदगी में "अपने सोचे हुए काम न कर पाना जन्म देता है - अपने अंदर धीरे धीरे उठते हुए तूफान को", जो एक दिन निराशा (frustration) में तब्दील हो जाता है, जिससे आगे चलकर हम चीड़-चिड़े हो जाते हैं और धीरे धीरे हर किसी से अपने को काटने की कोशिस करते है और कई बार तो हम Depression में भी चले जाते हैं.

मित्रों अब ऊपर वाले examples में सबसे पहले मन में सोचिये कि सबसे ज्यादा बुरा क्या होगा.
हम ये सोचने की जगह कि " कहीं ऐसा न हो जाये", अगर हम ये सोचेंगे कि "ज्यादा से ज्यादा क्या होगा" तो मानिये मित्रों हम कभी भी निराश नहीं होंगे, देखते है कैसे :-

1) ज्यादा से ज्यादा हम वाकई डूब जायेंगे.
2) ज्यादा से ज्यादा हम वाकई क्लास में fail हो जायेंगे.      
3) ज्यादा से ज्यादा Boss हमें नौकरी से निकाल देगा.
4) ज्यादा से ज्यादा हमारा सही में accident हो जायेगा.
5) ज्यादा से ज्यादा लोग हमारा मजाक ही तो उड़ाएंगे.
6) ज्यादा से ज्यादा लोग हमारे बनाये खाने की बुराई ही तो करेंगे.
7) ज्यादा से ज्यादा हम Competitive exam में fail हो जायेंगे.
8) ज्यादा से ज्यादा हमारा सारा पैसा डूब जायेगा.
9) क्या कभी हमारे परदादा ने risk नहीं लिया, उन्होंने अगर कभी Risk लिया तो क्या पूरा खानदान खत्म हो गया, नहीं न .....  
10) ज्यादा से ज्यादा हमें चोट ही तो लगेगी.
     
सार :- मित्रों ज्यादा से ज्यादा सोच लेने से कोई ज्यादा से ज्यादा थोड़े ही हो जाता है, पर हमारे अंदर का डर खत्म हो जाता है क्योँकि हम ज्यादा से ज्यादा worst के लिए तैयार हो जाते हैं और उस काम को करने की शुरुआत हो जाती है. बस मित्रों पहले कदम ही की तो जरुरत है जिंदगी चलाने के लिए..हमें सिर्फ और सिर्फ अपने सोचने के अंदाज को बदलना है, फिर देखिये हमारी जिंदगी कैसे चमत्कार करती है.

मित्रों आज 12 जनवरी, स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन, National Youth Day भी है.

अपना भारत देश बहुत ही युवा देश है. हमारी 65% जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है और आजकल कम उम्र के बच्चों में depression वाली बहुत समस्याएँ सुनने को मिलती हैं, इसलिए हमें चाहिए कि हम लोग मिलकर हमेशा उनकी हौसला अफजाई करते रहें, क्योँकि इसी युवा पीढ़ी ने अपने भारत को एक नयी ऊंचाइयों तक ले कर जाना है, बुजुर्गों के आशीर्वाद और Experience के साथ साथ.

विवेकानंद जी ने भी कहा था :-
Stand Up, Be Bold, Be Strong ......
Strength is Life, Weakness is Death.

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🌷कैसे रखता हूँ मैं खुद को Positive🌷

दोस्तों आज मैं आपके साथ एक बड़ी ही interesting और important बात share कर रहा हूँ. एक ऐसी छोटी सी  बात जिसने मेरे thought process को improve करने और positive बनाने में बहुत मदद की है.            मुझे पूरी उम्मीद है कि ये आपके लिए भी उतना ही लाभदायक होगा.  ऐसा मैं इसलिए भी कह पा रहा हूँ कि क्योंकि इसे समझना  बहुत ही simple है. और इसे practically apply करना भी आसान है.

मैं एक दूकान में ऐसी ही कोई book खोज रहा था, तभी David J. Schwartz की लिखी हुई किताब ,” The Magic of Thinking Big”  मुझे नज़र आई.  दो -चार पन्ने पलटने के बाद मैं समझ गया कि इसमें दम है और मैंने वो book खरीद ली.

      वैसे तो इसमें मैंने कई लाभप्रद बातें पढ़ीं पर एक बात मेरे दिमाग में  घर कर गयी और आज मैं उसी के बारे में बता रहा हूँ.

हमारा दिमाग विचारों  का निर्माण  करने वाली  एक फैक्ट्री  है . इसमें हर  वक़्त  कोई ना  कोई thought  बनती  रहती  है. और इस  काम  को कराने  के लिए  हमारे  पास   दो  बड़े  ही आज्ञाकारी  सेवक  हैं और साथ ही ये अपने काम  में  माहिर  भी हैं . आप  कभी  भी इनकी  परीक्षा  ले  लीजिये  ये उसमे  सफल  ही होंगे . आइये  इनका  परिचय  कराता  हूँ-

पहले  सेवक  का  नाम  है-  Mr. Triumph  या  मिस्टर विजय

दुसरे  सेवक  का  नाम  है- Mr. Defeat या  मिस्टर  पराजय

Mr . विजय  का काम  है आपके आदेशानुसार  positive thoughts का निर्माण करना. और Mr. पराजय  का काम  है आपके आदेशानुसार  negative thoughts का निर्माण करना. और ये सेवक इतने निपुण हैं कि ये आपके इशारे के तुरंत समझ जाते हैं और बिना वक़्त गवाएं अपना काम शुरू कर देते हैं.

Mr. विजय इस बात को बताने में  में specialize करते हैं कि आप चीजों को क्यों कर सकते हैं?, आप क्यों सफल हो सकते हैं?

Mr. पराजय इस बात को बताने में specialize करते हैं कि आप चीजों  को क्यों नहीं कर सकते हैं?,आप  क्यों असफल हो सकते हैं?

जब  आप   सोचते  हैं  कि मेरी life क्यों अच्छी हैतो तुरंत  Mr. विजय  इस  बात को सही  साबित  करने के लिए आपके दिमाग   में  positive thouhts produce करने लगते  है, जो आपके अब तक के जीवन के अनुभवों से निकल कर आती है . जैसे  कि-
मेरे पास  इतना  अच्छा  परिवार  है.मुझे चाहने  वाले  कितने  सारे  अच्छे  लोग  हैं .मैं well settled हूँ, financially इतना  सक्षम  हूँ कि खुश  रह  सकूँ .मैं जो करना चाहता  हूँ वो कर पा रहा हूँ. etc.

इसके  विपरीत  जब  आप सोचते  हैं  कि मेरी life क्यों अच्छी नहीं  है  ,तो तुरंत  Mr. पराजय   इस  बात को सही  साबित   करने के लिए आपके दिमाग में  negative thoughts produce करने लगते  है. जैसे  कि-

 मैं अपनी  life में अभी  तक  कुछ  खास  नहीं  achieve कर पायामेरी नौकरी  मेरी काबलियत  के मुताबिक़  नहीं  हैमेरे साथ हमेशा  बुरा  ही होता  है.etc.

ये दोनों  सेवक  जी जान   से  आपकी  बात का समर्थन  करते  हैं . अब  ये आपके ऊपर  depend करता  है कि आप  इसमें से  किसकी services  लेना  चाहते  हैं . इतना याद रखिये कि इनमे से आप जिसको ज्यादा काम देंगे वो उतना ही मजबूत होता जायेगा और एक दिन वो इस फैक्ट्री पर अपना कब्ज़ा कर लेगा, और धीरे-धीरे दुसरे सेवक को बिलकुल निकम्मा कर देगा.अब आप को decide करना है कि आप किसका कब्ज़ा चाहते हैं- मिस्टर विजय का या मिस्टर पराजय का?

यदि  life को improve करना है तो जितना  अधिक  हो  सके  thoughts produce करने का काम  Mr. विजय  को ही दीजिये . यानि  positive self talk कीजिये . नहीं तो अपने आप ही Mr. पराजय अपना अधिकार जमा लेंगे.

मैंने कई बार is simple but effective technique का use किया  है. मैं अपने thoughts पर हमेशा  नज़र रखता  हूँ और जैसे  ही negative thoughts का production बढ़ने  लगता  है मैं तुरंत  Mr. विजय  को काम  पर लगा  देता  हूँ, यानि  मैं  कुछ  ऐसे  statements खुद  से  बोलता  हूँ जो  positive thoughts की chain बना  देते  हैं  और मैं वापस  track पर आ जाता  हूँ.

For example: जब  मुझे लगता है कि मेरी personal relationships में तनाव आ रहा है तो मैं खुद से कहता हूँ कि भगवान ने  मुझे कितना प्यार करने वाले लोग दिए हैं. और बस आगे का काम मिस्टर विजय कर देते हैं. वो personal relationships से related मेरे सुखद अनुभव को मेरे सामने गिनाने लगते हैं और कुछ ही देर में मेरा mood बिलकुल सही हो जाता है. और जब mood सही हो जाता है तो वो मेरे actions में भी reflect करने लगता है.फिर तो सामने वाला भी ज्यादा देर तक नाराज़ नहीं रह पाता और जल्द ही सारी खटास निकल जाती है और फिर सब अच्छा लगने लगता है.

Thoughts को positive रखने का ये एक बहुत ही practical तरीका है. बस आपको जब भी लगे कि आपके ऊपर negativity हावी हो रही है तो तुरंत उस विचार के विपरीत विचार मन में लाइए. जैसे कि यदि आपके मन में विचार आता है कि आप काबिल नहीं हैं तो तुरन्त इसका उल्टा प्रश्न Mr. विजय से कीजिये कि ,” Mr. Vijay बताइए मैं काबिल क्यों हूँ?” और आप पायेंगे कि आपका ये सेवक आपके सामने उन अनुभवों को रखेगा जिसमे आपने कुछ अच्छा किया हो, for example, आपने कभी कोई prize जीता हो, किसी की मदद की हो, कोई ऐसी कला जिसमे आप औरों से बेहतर हों,etc.

बस इस बात का ध्यान रखियेगा कि आप स्वयं से जो प्रश्न कर रहे हैं वो सकारात्मक हो नकारात्मक नहीं.

आप भी इसे try कर  के देखिये. अपने thoughts पर नज़र रखिये , और जब आपको लगे कि मिस्टर पराजय कुछ ज्यादा ही सक्रीय हो रहे हैं तो जल्दी से कुछ positive self talk कीजिये और मिस्टर विजय को काम पर लगा दीजिये.

         
                🌷🌷🌷🌷🌷

"कछुआ और खरगोश"  कहानी एक नये अन्दाज़ में  – वो कहानी जो  आपने नहीं सुनी...
  जो आपके दिलो दिमाग मे हड़कंप मचा देगी , आपकी रगों मे जीत का जोश भर देगी -..

दोस्तों आपने कछुए और खरगोश की कहानी ज़रूर सुनी होगी, just to remind you; short में यहाँ बता देता हूँ:

एक बार खरगोश को अपनी तेज चाल पर घमंड हो गया  और वो जो मिलता उसे रेस लगाने के लिए challenge करता रहता।

कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली।

रेस हुई। खरगोश तेजी से भागा और काफी आगे जाने पर पीछे मुड़ कर देखा, कछुआ कहीं आता नज़र नहीं आया, उसने मन ही मन सोचा कछुए को तो यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा, चलो थोड़ी देर आराम कर लेते हैं, और वह एक पेड़ के नीचे लेट गया। लेटे-लेटे  कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला।

उधर कछुआ धीरे-धीरे मगर लगातार चलता रहा। बहुत देर बाद जब खरगोश की आँख खुली तो कछुआ फिनिशिंग लाइन तक पहुँचने वाला था। खरगोश तेजी से भागा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ रेस जीत गया।

Moral of the story: Slow and steady wins the race. धीमा और लगातार चलने वाला रेस जीतता है।

ये कहानी तो हम सब जानते हैं, अब आगे की कहानी देखते हैं:

रेस हारने के बाद खरगोश निराश हो जाता है, वो अपनी हार पर चिंतन करता है और उसे समझ आता है कि वो over-confident होने के कारण ये रेस हार गया…उसे अपनी मंजिल तक पहुँच कर ही रुकना चाहिए था।

अगले दिन वो फिर से कछुए को दौड़ की चुनौती देता है। कछुआ पहली रेस जीत कर आत्मविश्वाश से भरा होता है और तुरंत मान जाता है।

रेस होती है, इस बार खरगोश बिना रुके अंत तक दौड़ता जाता है, और कछुए को एक बहुत बड़े अंतर से हराता है।

Moral of the story: Fast and consistent will always beat the slow and steady. / तेज और लगातार चलने वाला धीमे और लगातार चलने वाले से हमेशा जीत जाता है।

यानि slow and steady होना अच्छा है लेकिन fast and consistent   होना और भी अच्छा है।

For example, अगर किसी ऑफिस में इन दो टाइप्स के लोग हैं तो वे ज्यादा तेजी से आगे बढ़ते हैं जो fast भी हैं और अपने फील्ड में consistent भी हैं।

कहानी अभी बाकी है..................

इस बार कछुआ कुछ सोच-विचार करता है और उसे ये बात समझ आती है कि जिस तरह से अभी रेस हो रही है वो कभी-भी इसे जीत नहीं सकता।

वो एक बार फिर खरगोश को एक नयी रेस के लिए चैलेंज करता है, पर इस बार वो रेस का रूट अपने मुताबिक रखने को कहता है। खरगोश तैयार हो जाता है।

रेस शुरू होती है। खरगोश तेजी से तय स्थान की और भागता है, पर उस रास्ते में एक तेज धार नदी बह रही होती है, बेचारे खरगोश को वहीँ रुकना पड़ता है। कछुआ धीरे-धीरे चलता हुआ वहां पहुँचता है, आराम से नदी पार करता है और लक्ष्य तक पहुँच कर रेस जीत जाता है।

Moral of the story:
Know your core competencies and work accordingly to succeed.  पहले अपनी strengths को जानो और उसके मुताबिक काम करो जीत ज़रुर मिलेगी.

For Ex: अगर आप एक अच्छे वक्ता हैं तो आपको आगे बढ़कर ऐसे अवसरों को लेना चाहिए जहाँ public speaking का मौका मिले। ऐसा करके आप अपनी organization में तेजी से ग्रो कर सकते हैं।

कहानी अभी भी बाकी है..................

इतनी रेस करने के बाद अब कछुआ और खरगोश अच्छे  दोस्त बन गए थे और एक दुसरे की ताकत और कमजोरी समझने लगे थे। दोनों ने मिलकर विचार किया कि अगर हम एक दुसरे का साथ दें तो कोई भी रेस आसानी से जीत सकते हैं।

इसलिए दोनों ने आखिरी रेस एक बार फिर से मिलकर दौड़ने का फैसला किया, पर इस बार as a competitor नहीं बल्कि as a team काम करने का निश्चय लिया।

दोनों स्टार्टिंग लाइन पे खड़े हो गए….get set go…. और तुरंत ही खरगोश ने कछुए को ऊपर उठा लिया और तेजी से दौड़ने लगा। दोनों जल्द ही नदी के किनारे पहुँच गए। अब कछुए की बारी थी, कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ बैठाया और दोनों आराम से नदी पार कर गए। अब एक बार फिर खरगोश कछुए को उठा फिनिशिंग लाइन की ओर दौड़ पड़ा और दोनों ने साथ मिलकर रिकॉर्ड टाइम में रेस पूरी कर ली। दोनों बहुत ही खुश और संतुष्ट थे, आज से पहले कोई रेस जीत कर उन्हें इतनी ख़ुशी नहीं मिली थी।

Moral of the story: Team Work is always better than individual performance. / टीम वर्क हमेशा व्यक्तिगत प्रदर्शन से बेहतर होता है।

Individually चाहे आप जितने बड़े performer हों लेकिन अकेले दम पर हर मैच नहीं जीता सकते।

अगर लगातार जीतना है तो आपको टीम में काम करना सीखना होगा, आपको अपनी काबिलियत के आलावा दूसरों की ताकत को भी समझना होगा। और जब जैसी situation हो, उसके हिसाब से टीम की strengths को use करना होगा।

यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है। खरगोश और कछुआ दोनों ही अपनी हार के बाद निराश हो कर बैठ नहीं गए, बल्कि उन्होंने स्थिति को समझने की कोशिश की और अपने आप को नयी चुनौती के लिए तैयार किया। जहाँ खरगोश ने अपनी हार के बाद और अधिक मेहनत की वहीँ कछुए ने अपनी हार को जीत में बदलने के लिए अपनी strategy में बदलाव किया।

जब कभी आप फेल हों तो या तो अधिक मेहनत करें या अपनी रणनीति में बदलाव लाएं या दोनों ही करें, पर कभी भी हार को आखिरी मान कर निराश न हों…बड़ी से बड़ी हार के बाद भी जीत हासिल की जा सकती है।

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प्रेरणादायक कविता


कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है,
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है ,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है,
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा-जाकर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दूना उत्साह इसी हैरानी में,
मुठ्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो,
जब तक न सफल हो, नींद चैन त्यागो तुम,
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम।
कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
               
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शायरी

* आदमी जब उदास होता है, सत्य के आसपास होता है।

* होकर मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिये
  जिन्दगी और है सूरज से निकलते रहिए।

* अकेलापन नहीं खलता उदासी भाग जाती है
   कभी खामोशियों में जब तुम्हारी याद आती है।

* अभी अरुज है तेरा मगर ख़याल रहे
   कि जोर तेरा भी ऐ आफ़ताब टूटेगा।

* या रब ये भेद क्या है कि राहत की फ़िक्र ने
   इनसाँ को और गम में गिरफ्तार कर दिया।

* कल सागर की लहरों को देखा
   तो तेरी मस्ती का ख़याल आया।

* थे सहारे और भी दुनिया में जीने के लिए
   जाने क्यों तेरे ही दामन का ख़याल आता रहा।

* जिसके ख्याल में हूँ गम उसको भी कुछ खयाल है ?
  मेरे लिए यही सवाल सबसे बड़ा सवाल है।

* हजारों उड़ते हैं इस दर से जिन्दगी लेकर
  ये कैसे कह दूँ के तुमको मेरा ख़याल नहीं।

* यहाँ हर एक को चाहत है धन की
  है किसको फ़िक्र अब अपने वतन की।

* किस-किस की फ़िक्र कीजिए किस-किस को रोइए
  आराम बड़ी चीज है मुँह ढक के सोइए।

* इतना रहे ख़याल सताने के साथ-साथ
  हम भी बदल रहे हैं ज़माने के साथ-साथ।

* अजब ये जिन्दगी की कैद है, दुनिया का हर इन्साँ,
  रिहाई माँगता है और रिहा होने से डरता है।

* मैं खुद भी एहतियातन इस गली से कम गुजरता हूँ
  कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए।

* उनकी गली में जिस दम पहुँचा मेरा जनाजा
   हसरत से देखते थे पर्दा उठा-उठा के।

* उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
  न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए।

* जितना मायूस है वो शख्स बिछड़कर मुझसे
  इतनी शिद्दत से तो मैंने उसे चाहा भी न था।

* हर गली, हर कूचे पर मेरी मजार है
  जहाँ हुस्न देखा वहीं मर गए।

* न जी भर के देखा न कुछ बात की
  बड़ी आरजू थी उनसे मुलाकात की।

* जो तमन्ना दिल में थी वो दिल में घुटकर रह गई
  उसने पूछा भी नहीं हमने बताया भी नहीं।

* अब उनको देखने की तमन्ना ही मर गई
  देखे हुए किसी को जमाना गुजर गया।

* उम्रे-दराज माँग के लाए थे चार दिन
  दो आरजू में कट गए दो इंतजार में।

* इक बार दिल ने की थी तेरी आरजू की भूल
  जालिम मुसीबतों में गिरफ़्तार हो गया।

* हसरत पे उस मुसाफ़िरे बेकस की रोइए
  जो थक के बैठ जाता हो मंजिल के सामने।

* बातों - बातों में कोई बात खटक जाती है
  एक - दो लफ़्ज ही बेगाना बना देते हैं।

* साफ जाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
  मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं।

* अजीब लहजा है दुश्मन की मुस्कुराहट का
  कभी गिराया है मुझको कभी संभाला है।

* चुप हैं किसी सबब से तो पत्थर हमें न जान
  दिल पे असर हुआ है तेरी बात - बात का।

* हरेक बात पे कहते हो तुम के तू क्या है
  तुम्हीं कहो के ये अन्दाज़े गुफ्तगू क्या है।

* हम नहीं तीर और तलवार से मरने वाले
  क़त्ल करना है तो एक तिरछी नज़र काफी है।

* खंजर से करो बात न तलवार से पूछो
  मैं क़त्ल हुआ कैसे मेरे यार से पूछो।

* जख़्म तलवार के गहरे भी हों मिट जाते हैं
  लफ़्ज तो दिल में उतर जाते हैं खंजर की तरह।

* क़त्ल करके क़ातिल ने बहुत हाथ मले
  उसने जब मेरे तड़पने का सलीका देखा।

* मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन
  आवाजों के बाजार में ख़ामोशी पहचाने कौन।

* तुमने चुप रहके सितम और भी ढाया मुझ पर
  तुमसे अच्छे हैं मेरे हाल पे हँसने वाले।

* मोहब्बत के लिए कुछ खास दिल मख़सूस होते हैं
ये वो नग़मा है जो हर साज पे गाया नहीं जाता।

* जिन्दगी का साज भी क्या साज है
   बज रहा और बेआवाज है ।

* मोहब्बत सोज भी है साज भी है
  ये ख़ामोशी भी है आवाज भी है ।

* लो अब मैं रुख़सत होता हूँ सम्हालो साजे गजल
  छेड़ो नए तराने कि मेरे नग़्मों को नींद आती है।

* दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
  क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो ।

* कहते हो तुम दिल का भरोसा नहीं है
  महफ़िल में मचल जाए ऐसा तो नहीं है ।

* जो तेरी बज़्म से उठा वो इस तरह उठा
  किसी की आँख में आँसू किसी के दामन में ।

* उदास - उदास है चेहरा निग़ाह बरहम है
  ये जिन्दगी है कि ये जिन्दगी का मातम है ।

* हुस्न वालों की मासूम जफ़ाएँ देखो
  क़त्ल करके भी वो क़ातिल नहीं होते।

* मंजर भी हादसे का अजीबो गरीब था
  वो आग से जला जो नदी के करीब था।

* तेरे पाँव के नीचे कोई जमीन नहीं
  कमाल ये है के फिर भी तुझे यकीन नहीं।

* अपनी बुलंदियों पर मत नाज़ करो इतना
  हमने तो सितारों को भी गिरते हुए देखा है।